गुरुवार, 12 सितंबर 2024

दिव्यांगता : वर्तमान परिदृश्य

 

दिव्यांगता : वर्तमान परिदृश्य


प्रस्तावना
दिव्यांगता, जिसका सीधा अर्थ है शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक रूप से सक्षम न होना, समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लंबे समय तक, समाज ने दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी सीमाओं के आधार पर परिभाषित किया है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव आया है। आज, दिव्यांगता केवल व्यक्ति की सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके अधिकारों, संभावनाओं और समाज में उनकी भूमिका को समझने का भी एक साधन बन गया है।
 भारत में दिव्यांगता की स्थिति
भारत, एक विशाल जनसंख्या वाला देश, जहां करीब 2.21% जनसंख्या दिव्यांगता से ग्रस्त है (2011 की जनगणना के अनुसार), यहां दिव्यांगों की स्थिति लगातार सुधर रही है। भारतीय संविधान में समानता का अधिकार सुनिश्चित किया गया है, लेकिन दिव्यांग व्यक्तियों को लंबे समय तक मुख्यधारा से अलग रखा गया। हालांकि, सरकार और समाज द्वारा किए गए सामूहिक प्रयासों से दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति में सुधार आ रहा है।
 कानूनी पहल और योजनाएं
2016 में भारतीय संसद द्वारा पारित द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज (RPWD) एक्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को मजबूत किया। इस अधिनियम ने दिव्यांगता की 7 श्रेणियों (1-दृष्टि बाधित (Blindness),2- दृष्टिदोष (Low Vision), 3-कुष्ठरोग मुक्त व्यक्ति (Leprosy-cured), 4- श्रवण बाधित (Hearing Impairment), 5- गतिशीलता में बाधा (Locomotor Disability), 6- मानसिक मंदता (Mental Retardation) और 6- मानसिक रोग (Mental Illness) को बढ़ाकर 21 (1. दृष्टिहीनता (Blindness),2. निम्न दृष्टि (Low Vision), 3. बहरापन (Deaf), 4. श्रवण बाधित (Hard of Hearing), 5. लोकोमोटर डिसएबिलिटी (Locomotor Disability), 6. बौद्धिक दिव्यांगता (Intellectual Disability), 7. मानसिक रोग (Mental Illness), 8. स्वलीनता या ऑटिज़्म (Autism Spectrum Disorder), 9. सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy), 10. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy), 11. क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन्स (Chronic Neurological Conditions), 12. विशेष प्रकार के सीखने की अक्षमता (Specific Learning Disabilities), 13. बधिरान्धता (Deafblindness), 14. कुष्ठ रोग के कारण उत्पन्न विकलांगता (Leprosy Cured Persons), 15. मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis), 16. थैलेसीमिया (Thalassemia), 17. हीमोफीलिया (Hemophilia), 18. सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) 19. पार्किंसन रोग (Parkinson’s Disease),20. एसिड अटैक पीड़ित (Acid Attack Victims), 21. मल्टीपल डिसएबिलिटीज (Multiple Disabilities) कर दिया और शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बेहतर अवसर प्रदान किए। इसके अलावा, सरकारी और निजी संस्थानों में 4% आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है।
सरकार की योजनाओं जैसे कि स्वावलंबन योजना, दिव्यांगजन सशक्तिकरण योजना, और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ने दिव्यांगों को स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और रोजगार में विशेष सहूलियतें प्रदान की हैं।
 समाज में बदलाव
हाल के वर्षों में, सामाजिक दृष्टिकोण में भी सकारात्मक बदलाव देखा गया है। अब दिव्यांगता को सहानुभूति के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि अधिकार और समानता के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और सामाजिक समूहों ने दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है।
समान शिक्षा की अवधारणा ने दिव्यांग बच्चों के लिए नए द्वार खोले हैं। अब उन्हें भी समान अवसर मिल रहे हैं, और कई संस्थान विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं।
रोजगार में अवसर
नियोक्ता भी अब दिव्यांगता को एक बाधा के रूप में नहीं देखते, बल्कि वे इसे एक विविधता और समावेशन के पहलू के रूप में मान्यता दे रहे हैं। कई कॉर्पोरेट कंपनियां दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विशेष रोजगार योजनाएं चला रही हैं और उन्हें कौशल विकास के अवसर प्रदान कर रही हैं। दिव्यांगजन सशक्तिकरण के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का भी व्यापक उपयोग हो रहा है, जिससे दिव्यांग व्यक्तियों को काम करने के नए अवसर मिल रहे हैं।
चुनौतियां
इस सकारात्मक परिदृश्य के बावजूद कई चुनौतियां बनी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसरों तक पहुंच बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अव्यवस्थित इंफ्रास्ट्रक्चर, जैसे- स्कूलों, कार्यालयों और सार्वजनिक स्थलों पर रैंप और अन्य सुविधाओं की कमी, दिव्यांगों की पहुंच को सीमित करती है।
इसके अलावा, समाज के कई हिस्सों में अभी भी दिव्यांगता को लेकर कलंक और भेदभाव की भावना मौजूद है। सामाजिक स्तर पर जागरूकता की कमी दिव्यांग व्यक्तियों के विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
 आगे की दिशा
भविष्य के लिए आवश्यक है कि हम दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति समाज की सोच को और बदलें और इसे अधिक समावेशी बनाएं। सरकार को भी नीतिगत ढांचे में सुधार करना होगा ताकि दिव्यांग व्यक्तियों को शिक्षा और रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें।
तकनीकी विकास, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वर्चुअल रियलिटी और अन्य डिजिटल उपकरण, दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। समान अधिकार, समान अवसर का सिद्धांत ही वह मार्ग है, जिससे समाज और देश दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभा सकता है।
निष्कर्ष
दिव्यांगता के वर्तमान परिदृश्य में हमें न केवल दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को समझना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज का एक महत्वपूर्ण और उत्पादक हिस्सा बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। समाज में दिव्यांगों के प्रति संवेदनशीलता और समावेशी दृष्टिकोण ही उन्हें सशक्त और स्वतंत्र बना सकता है।

संदर्भ

    • ·         भारत की जनगणना 2011 – "भारत की जनसंख्या में दिव्यांगता का प्रतिशत और वितरण," जनगणना रिपोर्ट, भारत सरकार, 2011.
    • ·         द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज एक्ट, 2016 – "दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम," भारत सरकार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, 2016.
    • ·         विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) – "विश्व स्तर पर दिव्यांगता की स्थिति," विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट, 2011.
    • ·         सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय – "दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सरकारी योजनाएं," सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार.
    • ·         राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (NIEPVD) – "दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए पहल," NIEPVD, 2020.

लेखक : 

दानवीर गौतम 

असि० प्रोफ़ेसर (श्रवण बाधितार्थ ) 

डी.एस.एम.एन.आर.विश्वविद्यालय, लखनऊ 


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